अमेरिका प्रशासन ने 19 सितंबर 2025 को नई एच1बी वीजा आवेदन शुल्क को बढ़ाकर 100,000 डॉलर करने की घोषणा की। मौजूदा एच1बी वीजा धारक और पहले से आवेदन जमा करने वाले इस नई नीति से प्रभावित नहीं होंगे। इस बीच, ऑप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग (ओपीटी) कार्यक्रम में प्रस्तावित बदलावों की चर्चा है, जिस पर कई अंतरराष्ट्रीय छात्र अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद निर्भर करते हैं। यह कार्यक्रम एफ1 वीजा पर अंतरराष्ट्रीय छात्रों को स्नातक होने के बाद एक साल तक अमेरिका में काम करने की अनुमति देता है।
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प्रस्तावित सुधारों में डिग्निटी एक्ट और HIRE एक्ट शामिल हैं, जिनका उद्देश्य एक नया OPT टैक्स लागू करना है जो भारतीय छात्रों और विदेशों से कुशल कर्मचारियों को आमंत्रित करने वाली अमेरिकी कंपनियों पर प्रभाव डालेगा। वर्तमान में, OPT कार्यक्रम के तहत काम करने वाले अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को करों का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है। ये सभी बदलाव अमेरिका में पढ़ाई और काम करने की इच्छा रखने वाले भारतीय छात्रों के लिए चुनौतियां बढ़ाएंगे। प्रस्तावित OPT टैक्स और भारतीय छात्रों पर इसके प्रभाव के बारे में अधिक जानने के लिए यह लेख पढ़ें।
ऑप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग (OPT) एक ऐसा कार्यक्रम है जो F1 वीजा पर अंतरराष्ट्रीय छात्रों को उनकी पढ़ाई पूरी करने के बाद अमेरिका में अपनी शिक्षा के क्षेत्र से संबंधित नौकरी करने की अनुमति देता है। यह अवधि 12 महीने की होती है और STEM स्नातकों के लिए इसे बढ़ाने की संभावना होती है। इसलिए, OPT अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए अमेरिका में काम करने और बाद में H1B वीजा स्थिति में बदलाव करने का एक रास्ता है।
यदि OPT नियमों में कोई बदलाव होता है, जैसे OPT कर लागू करना, तो इसका अंतरराष्ट्रीय छात्रों पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा। हाल ही में H1B वीजा शुल्क में $100,000 की वृद्धि के साथ, नियोक्ता H1B आवेदनों को प्रायोजित करने में अधिक चयनात्मक हो सकते हैं। इससे OPT से H1B में बदलाव करना कई छात्रों के लिए और अधिक चुनौतीपूर्ण हो सकता है, खासकर अगर वे अत्यधिक कुशल नहीं हैं। इसके अलावा, यदि अंतरराष्ट्रीय छात्रों को OPT कर देना पड़े, तो यह उनकी लागत में इजाफा करेगा और वित्तीय चुनौतियां पैदा कर सकता है।
अमेरिका में डिग्निटी एक्ट, ऑप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग (OPT) पर कार्यरत अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के लिए FICA (फेडरल इंश्योरेंस कॉन्ट्रिब्यूशन एक्ट) कर छूट को समाप्त करने का एक प्रस्ताव है।
FICA एक पेरोल कर है जो सोशल सिक्योरिटी और मेडिकेयर के लिए लिया जाता है। वर्तमान में, OPT पर काम करने वाले छात्रों को सोशल सिक्योरिटी और मेडिकेयर कर नहीं देना पड़ता। हालांकि, यदि डिग्निटी एक्ट पारित हो जाता है, तो इन छात्रों को कर्मचारी और नियोक्ता दोनों के हिस्से का योगदान करना होगा।
सामाजिक सुरक्षा में नियोक्ता से 6.2% और कर्मचारी से 6.2% राशि ली जाती है, जो कुल मिलाकर 12.4% है।
मेडिकेयर के लिए यह कर्मचारी और नियोक्ता दोनों के लिए 1.45% है, जिससे कुल मिलाकर यह 2.9% हो जाता है।
इसका मतलब यह है कि कर्मचारी कर के कारण OPT कर्मचारी के वेतन में कटौती होगी, जबकि नियोक्ताओं को OPT कर्मचारियों को नियुक्त करने के लिए अधिक लागत का सामना करना पड़ेगा।
HIRE एक्ट का पूरा नाम है हॉल्टिंग इंटरनेशनल रिलोकेशन ऑफ एम्प्लॉयमेंट एक्ट यानि "रोज़गार के अंतर्राष्ट्रीय स्थानांतरण को रोकने का अधिनियम"। यह एक और प्रस्ताव है जो अमेरिका में आउटसोर्सिंग और अंतरराष्ट्रीय श्रम के उपयोग को नियंत्रित करने से संबंधित है। इस एक्ट के तहत, अमेरिकी कंपनियां जो अंतरराष्ट्रीय कर्मचारियों को नौकरी आउटसोर्स करती हैं, उन्हें संबंधित भुगतानों पर 25% कर देना होगा।
इसका लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय श्रम, जिसमें रिमोट वर्क और ऑफशोरिंग शामिल हैं, की संख्या को कम करना है। अंतरराष्ट्रीय छात्र इस एक्ट से अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होते हैं, क्योंकि OPT पर काम करने वाले छात्रों पर निर्भर व्यवसायों को भी प्रभावित करेगा।
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अमेरिका में नीतियों में हो रहे इन बदलावों का असर भारतीय छात्रों पर पड़ेगा क्योंकि वे अमेरिका में सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय समुदायों में से एक हैं। भारतीय छात्रों पर इसका प्रभाव इस प्रकार होगा:
OPT के दौरान आय में कमी: कई भारतीय छात्रों के लिए, OPT कर उनकी कमाई को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा, क्योंकि अमेरिका में रहने की उच्च लागत को देखते हुए, अतिरिक्त खर्च उनकी आय को कम कर देगा।
रणनीतिक नियुक्ति: नियोक्ताओं पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ और HIRE एक्ट से जुड़ी उच्च लागत के कारण, कंपनियां OPT कर्मचारियों को नियुक्त करने से बच सकती हैं। कंपनियां अमेरिकी नागरिकों या स्थायी निवासियों को प्राथमिकता दे सकती हैं।
OPT से H1B में बदलाव की चुनौतियां: नए H1B आवेदनों के लिए $100,000 का शुल्क लागू होने से कई नियोक्ता केवल वरिष्ठ स्तर के पदों के लिए H1B प्रायोजित करने को तैयार हो सकते हैं। नतीजतन, OPT पर छात्रों को H1B प्रायोजन प्राप्त करना मुश्किल हो सकता है। इसके अलावा, यदि HIRE एक्ट पारित होता है, तो H1B वीजा शुल्क के साथ OPT कर नियोक्ताओं के लिए अतिरिक्त लागत होगी।
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H-1 B वीजा एक ऐसा वीजा है, जिसके जरिये आप अमेरिका में लंबे समय तक काम कर सकते हैं और फिर अमेरिका में काम करते हुए कुछ समय बाद आप ग्रीन (Green Card) कार्ड के लिए भी आवेदन कर सकते हैं। H-1 B वीजा अमेरिका में ग्रीन कार्ड और स्थायी नागरिकता के रास्ते खोल सकता है।
हर साल लाखों भारतीय छात्र पढ़ाई के लिए अमेरिका जाते हैं। वे वहां सबसे पहले F-1 वीजा लेकर अमेरिका में पढ़ाई करते हैं। इस दौरान छात्रों को कुछ जरूरी स्किल्स सीखनी होती हैं क्योंकि कंपनियां उन्हीं विद्यार्थियों को तवज्जो देती हैं, जिनके पास एक्स्ट्रा और जरूरी स्किल्स होती हैं। इसके बाद OPT (Optional Practical Training) पर नौकरी करते हैं। ओपीटी एक तरह के वर्क परमिट होता है जिससे आप अमेरिका में 12 महीने तक फुल टाइम काम कर सकते हैं। इसके बाद यदि कंपनी में आप अच्छा परफॉर्म करते हैं तो कंपनी आपको H-1 B वीजा स्पॉन्सर कर सकती है। लेकिन उससे पहले जॉब (OPT) में रहते हुए आपको खुद को अपस्किल करना होगा।
आज के समय में लाखों स्टूडेंट्स अमेरिका में एच वन बी वीजा लेने की कोशिश में रहते हैं। ऐसे में इस वीजा को लेकर प्रतिस्पर्धा भी बहुत है। इसलिए स्टूडेंट्स OPT अवधि के दौरान पहले से ही नौकरी ढूंढना शुरू कर देते हैं। साथ ही ऐसी कंपनियों की पहचान भी जरूरी होती है, जो H-1 B वीजा स्पांसरशिप के लिए तैयार हों। वीजा की डेडलाइन और अपडेट्स पर जानकारी रखना भी काफी जरूरी हो जाता है।
H-1 B वीजा अमेरिका में ग्रीन कार्ड और स्थायी निवास के साथ-साथ लंबे समय तक नौकरी करने के मौके खोल देता है। पहले तो H-1B के जरिये भारतीय छात्रों के लिए अमेरिका में नौकरी पाना काफी आसान था। पहले तो F-1 वीजा पर पढ़ने के लिए अमेरिका जाओ और फिर वहां पर नौकरी (Optional Practical Training) करो। इसके बाद देश में H-1 B वीजा हासिल कर आराम से नौकरी की जा सकती है।
H-1 B वीजा एक बार फिर सुर्खियों और विवादों में है और इसकी बड़ी वजह ट्रंप सरकार की नीतियों में हुआ बदलाव है। नई नीति के तहत अमेरिकी कंपनियों को H-1B वीजा आवेदन के लिए अब 1,00000 डॉलर की एकमुश्त फीस चुकानी पड़ेगी। पहले ये फीस 2,000 से लेकर 5,000 डॉलर के बीच होती थी। ये फैसला अमेरिकी श्रमिकों की नौकरियां और विदेशी कामगारों की संख्या को सीमित करने के उद्देश्य से लिया गया है।
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